Thursday, July 11, 2024

श्वान से DOG/BITCH तक

अभी गत सप्ताह एक अंग्रेजी के समाचार-पत्र (The Hindustan Times) में केरल में Stray Dogs को मारने की योजना का समाचार पढ़ा, कुछ लोगों को काट खाया होगा...अत: प्रशासन ने उन्हें मारने का मन बनाया ! एक ओर पश्चिमी विकृतियों को अपनाते हुए भारतीयों ने गो-पालन छोड़ कुत्ता-बिल्ली पालन में अत्यन्त विकास किया है (विशेषकर कुत्तों की विदेशी प्रजातियों का), वहीँ देशी कुत्तों को मारने की सीमा तह तिरस्कृत करने का गौरव प्राप्त किया है ! पश्चिम से महिलाओं के प्रति सहिष्णु व सम्मान-जनक शब्दों के शब्दकोष में BLOODY BITCH शब्द का समावेश भारतीय सम्भ्रान्त वर्ग में हुआ है ! भारतीय सिनेमा की मरुभूमि मुम्बई का नाम Hollywood जैसा ही BOLLYWOOD करके भारतीय चल-चित्र जगत (विशेषकर हिन्दी सिनेमा) ने विकास के ऊंचे आयामों को छुआ और गरियाने की भाषा में कुत्ते शब्द अनायास ही जुड़ गया ! इसके विपरीत भारतीय परम्परा में यद्यपि हमने कुत्ते को घर में प्रवेश नहीं दिया किन्तु कुत्ते को मारने का नहीं वरन उसके लिए ग्रास निकाल कर उसके भोजन की भी व्यवस्था की "गाय- कुत्ते कोव्वे का ग्रास निकालने की अपनी परम्परा रही है" ! हमें बताया गया कि कुत्ता स्वामी-भक्त है FAITHFUL है, भारतीय फिल्मों में कुत्ते की वीरता के दृश्य प्रस्तुत किये गए हैं किन्तु यह वास्तविकता के विपरीत है ! चोर लुटेरों डाकुओं के कृत्यों में कुत्ते कभी कोई प्रभावशाली व्यवधान नहीं कर सके, क्योंकि वो उनके लिए भोजन का प्रबन्ध किए रहते हैं ! कुत्ते द्वारा प्यार दर्शाने के चिह्नों को उसकी स्वामिभक्ति का लक्षण कहना हो तो ठीक है क्योंकि "पूंछ हिलाना, पेट दिखाना, भूमि पर लोटपोट होकर अपने स्वामी को रिझाना ये स्वभाव है श्वान का" " लांगूलचालनमधाश्चरणावपातं भूमौ निपत्य वदनोदरदर्शनं च " ऋग्वेद में देवशुनी सरमा नाम की कुतिया को गाय चुराने वाले पणियों का रहस्य लेने देवगुरु बृहस्पति ने भेजा क्योंकि पणियों ने देवराज इन्द्र की गायें चुरा ली थीं ! पणियों ने सरमा को दूध पिलाया और सरमा उन्हीं की हो गई, जब वह लौट कर आई तो देवगुरु बृहस्पति ने उसे स्वर्ग से निष्कासित कर दिया और उसके पश्चात् सरमा के वंशजों को गृह-कक्ष से बाहर रखा गया है ! कहा जाता है कि सरमा के २ पिल्लों को यमदेवता अपने द्वार पर रखते हैं, भीतर नहीं आने देते, इनमें एक श्याम-वर्ण का है दूसरा चितकबरा ! वैदिक अग्निहोत्री भोजन से पूर्व इन दोनों के लिए ग्रास अवश्य निकलते हैं ! वैदिक साहित्य में एक हीं ब्राह्मण का कथानक है जिसने अपने ३ पुत्रों का नाम कुत्ते की जाति पर रखा- शुन:शेप, शुन:पुच्छ और शुन:लांगूल ! दूसरे और तीसरे का अर्थ कुत्ते की पूँछ व पहले का कुत्ते की कामेन्द्रिय है, इनमें से प्रथम शुन:शेप राजा हरिश्चंद्र के यज्ञ का ऋगवैदिक ऋषि है ! यमदेवता के दूत जब पृथ्वी पर किसी के प्राण लेने आते हैं तो कुत्ते उन्हें देख पाने में समर्थ होते हैं और अपने विशेष क्रन्दन से मृत्युदूत की उपस्थिति का संकेत देते हैं, ऐसी मान्यता रही है ! ऐसा ही गीदड़ के विषय में कहा गया, गीदड़ों के क्रन्दन को विनाश के आगमन का सूचक मना गया ! रूद्र का संदेशवाहक होने से गीदड़ी को शिवा अथवा शिवदूती भी कहा गया ! कदाचित इसी कारण महाभारत के युधिष्ठिर जो यम के ही अंशावतार हैं स्वर्गारोहण के समय अपने कुत्ते को स्वर्ग के भीतर ले जाना चाहते हैं ! वैष्णव देवालयों में अथवा यज्ञानुष्ठान में कुत्ते का प्रवेश निषिद्ध रहा किन्तु शिवालयों में नहीं ! Stray Dogs को भारत में चाटुकारिता नहीं करनी पड़ी क्योंकि गृह द्वार पर उपस्थित होते ही उसके भाग का ग्रास उसे मिल गया ! विष्ठाहारी, मांसाहारी कुत्ते को घर के बाहर तक वर्जित कर दिया गया ! कुत्ते की चाटुकारिता के विषय में भी आचार्यों ने अपनी आजीविका के लिए श्वान-वृत्ति अपनाने से मना किया- "न श्ववृत्त्त्या कदाचन" भक्षण के विषय में अविवेकी कहते हुए कहा गया कि कुत्ता सुखी हड्डी चबाते अपने तालू से निकले रक्त का आस्वादन करता आत्महन्ता तक बन जाता है ! मुगियों को एक कारण से यमलोक पहुँचाना, कुत्तों को दुसरे कारण से व मनुष्यों (काफिरों/Pagans) को तीसरे कारण से जीवन-मुक्त करना ये उन्मुक्त प्रचलन है अ-भारतीय संस्कार-युक्त समाज में.....भारतीय संस्कार तो "धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो" का सन्देश प्रसारित करता सर्वे सन्तु निरामया की भी कामना करता है अत: किसी के प्राण लेने का तो प्रश्न ही नहीं ! https://scontent.fixc8-1.fna.fbcdn.net/v/t31.18172-8/11143426_10204600311748044_1389190137478540711_o.jpg?_nc_cat=102&ccb=1-7&_nc_sid=348c05&_nc_ohc=qRsxLj1pp0AQ7kNvgGky05F&_nc_ht=scontent.fixc8-1.fna&oh=00_AYDKzuhYxEIyPRHKZh89T3hiXskQRHVrM5uX8RNwnCn2Cw&oe=66B8336C