Saturday, August 18, 2007

प्रतिभा पाटिल- नवनिर्वाचित President (राष्ट्रपत्नी)

प्रतिभा पाटिल- नवनिर्वाचित President (राष्ट्रपत्नी)
हां, प्रतिभा पाटिल के रूप में नवनिर्वाचित President को यदि हिन्दी में कहना हो तो राष्ट्रपत्नी ही कहा जायेगा, क्योंकि वह एक स्त्री हैं। राष्ट्रपति का "पति" शब्द अनिवार्य रूप से पुरुषवाचक है, स्त्री अथवा उभयवाचक नहीं, अतएव यदि पुरुष
Presidents को राष्ट्रपति कहा गया तो निश्चित रूप से महिला को राष्ट्रपत्नी ही कहा जायेगा।
अपनी भाषा को न जानने वाले अथवा भाषा के प्रति उदासीन लोगों को किसी भी निरर्थक शब्द पर कोई आपत्ति नहीं होती,किन्तु भाषा के प्रति संवेदनशील व्यक्तियों के लिये शब्द अत्यधिक महत्वपूर्ण होते हैं। यही कारण है एक महिला होने से प्रतिभा को राष्ट्रपति कहना हिन्दी के साथ उपहास जैसा होगा।
अपने पुरातन हिन्दी-संस्कृत साहित्य में जहां भी पति शब्द का प्रयोग हुआ है, वह अनिवार्यतः पुरुष के लिये ही है, यथा सीतापति- श्रीराम, उमापति-भगवान शंकर। यहां पति शब्द का एकमात्र अर्थ पुरुषवाचक Husband ही है। क्या स्त्रियां पति अथवा Husband हो सकती हैं? कदाचित नहीं। अन्य स्थलों पर अपनी भाषा में पति शब्द का स्वामी के अर्थ में प्रयोग हुआ है, यथा- भूपति, लखपति, अरबपति आदि भूमि, धन-सम्पत्ति के स्वामी। इन शब्दों का प्रयोग भी निश्चित रूप से पुरुषवाचक संज्ञा के लिये हुआ है। अन्य उदाहरण के रूप में एक और शब्द का प्रयोग भगवान कृष्ण के लिये हुआ- यदुपति। यहां भी यादवों के स्वामी के रूप में कृष्ण पुरुष ही हैं। अतः ये स्वतःसिद्ध हुआ कि पति शब्द अनिवार्यतः पुरुषवाचक है, स्त्री अथवा उभय नहीं।
इसीलिये प्रतिभा को उनके महिला होने के कारण पति कहना उनकी नारी गरिमा के अनुरूप नहीं।
राजनैतिक स्वाधीनता के उपरांत भारत के शासकों की सबसे बङी त्रासदी यह रही कि भारत की शासकीय व्यवस्था से संबन्धित सभी विषयों का चिंतन अंग्रेज़ी भाषा में किया गया तथा बाद में कुछ महत्वपूर्ण शब्दों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया, और उसमें कहीं-कहीं भारी त्रुटि रह गयी। संभवतः ऐसा ही President शब्द के साथ हुआ है। राष्ट्रचाचा ने अपने से अधिक लोकप्रिय नेताओं में से एक तो Father of the Nation बना कर राष्ट्रपिता घोषित कर दिया तथा अपनी एक अंतरंग सहचरी Edwina Mountbatten के स्थान पर President के पद का सृजन कर उसका कुविचारित हिन्दी अनुवाद "राष्ट्रपति" करते हुए उस पद पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को विराजित कर स्वयं बन गये चाचा नेहरू।
विचार करें तो ये दोनों ही शब्द व पदनाम इस सनातन-पुरातन राष्ट्र के साथ कुविचारित आपराधिक षडयन्त्र हैं। स्वाभाविक प्रश्न ये हैं कि- १.क्या कोई भी व्यक्ति ( मनुष्य-देव-अवतार-महात्मा), इस देश का पिता हो सकता है?
२. क्या भारत का जन्म १५ अगस्त १९४७ को हुआ?
३.क्या संस्कृत मन्त्रों के अर्यावर्त-जम्बूद्वीप-भरतखन्ड आदि पुरातन नाम व्यर्थ है?
४. क्या केवल कांग्रेस व गांधी ने ही इस देश को राजनैतिक स्वातंत्रय दिलाया?
५. यदि हुम इस देश को अपनी भारतमाता मानते हैं, तो क्या मोहनदास कर्मचन्द गांधी भारतमाता के भी पिता हैं अथवा पति?
इसी प्रकार पति शब्द के पुरुषलिंग संबंधित विचार को त्याग भी दें तथा उसे स्वामी के अर्थ में सोचें तो भी क्या कोई भी व्यक्ति इस देश का स्वामी हो सकता है? क्या ये देश एक सम्पत्ति है, जिस्का स्वामी राष्ट्रपति कहा गया?
स्वभाषा-संस्कृति व राष्ट्रद्रोही धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक नेतृत्व दुर्भाग्य से इस राष्ट्र का विभाजन कराने में हि सफ़ल नहीं हुआ, वरन् सत्ता के माध्यम से राष्ट्र की संस्कृति को विकृत करने में भी सफ़लता प्राप्त की है।
हमने इस देश के पटल पर एक माता के रूप में इंदिरा जी को स्थापित होते देखा है। सत्ताधीषों द्वारा कहा गया था- Indira is India & India is Indira.
फ़िर आये राजीव भैया, सोनिया भाभी और अब हमें मिली हैं- राष्ट्रपत्नी, बधाई।

डॉ. जयप्रकाश गुप्त
chikitsak@rediffmail.com
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Friday, August 17, 2007

प्रतिभा पाटिल-नवनिर्वाचितPresident
प्रतिभाताई पाटिल के President बनने से अब अपने देश पर उस विदेशी महारानी के एकछत्र साम्राज्य के पुष्टिकरण का एक महत्वपूर्ण संकेत है, जिसकी सेवा में अपने देश के प्रधानमन्त्री मनमोहन सदैव नतमस्तक रहते हैं।
प्रतिभाताई अपने किन्हीं नैतिक- राजनैतिक अथवा प्रशासनिक गुणों के कारण President निर्वाचित नहीं हुईं, वरन् एक परिवार के प्रति अपनी अप्रतिम निष्ठा के कारण। वह एक स्त्री होने के कारण भी इस पद पर नहीं पहुंचीं हैं, अपितु इस अभागे देश की राजनीति में राष्ट्रवाद, सच्चरित्रता व इमानदारी के प्रति प्रबल विरोध के कारण। नहीं तो क्या कारण था उनके समर्थन में मतदान का, जबकि उन पर अनेकों प्रकार के आर्थिक-आपराधिक घोटालों का आरोप था?, उनके प्रतिद्वन्द्वी श्री भैरोंसिंह शेखावत द्वारा अपनी सम्पत्ति का व्यौरा दिये जाने पर भी प्रतिभा के समर्थकों ने ऐसी किसी घोषणा की आवश्यकता नहीं समझी?, जनप्रतिनिधियों के एक समूह द्वारा President चुनाव के बहिष्कार की घोषणा से व्यथित राष्ट्रवादियों के एक समूह द्वारा चुनाव आयोग से इस अप्रजातांत्रिक अपराध को रोकने की प्रार्थना की,तो चुनाव आयोग ने वह याचिका अस्वीकार कर दी?,उपराष्ट्रपति के पद पर श्री भैरोंसिंह शेखावत के निष्पक्ष व्यवहार की सर्वत्र स्वीकर्यता होते हुए भी जनप्रतिनिधियों ने एकपक्षीय-एक परिवार के प्रति निष्ठावान-अनेकों आपराधिक मामलों व सत्ता के दुरुपयोग के गम्भीर मामलों की आरोपी प्रतिभा को चुना?
सत्तापक्ष द्वारा प्रतिभा का इस पद के लिये नामांकन भी कम निराशाजनक नहीं है। डॉ. कर्ण सिंह का नामांकन इसलिये नहीं हुआ क्योंकि Secular
राजनेताओं की दृष्टि में वह एक व्यवहारिक हिन्दु हैं और एक धर्मनिष्ठ हिन्दु इस पद के योग्य नहीं तथा दूसरे सम्भावित शिवराज पाटिल पर उनके लोकसभा अध्यक्ष कार्यकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति उनके नरम व्यवहार के कारण उनका नामांकन नहीं हो पाया।
कोई भी सच्चरित्र राष्ट्रभक्त इस नवनिर्वाचित President के प्रति श्रद्धा अथवा आदर कैसे रखे, यही इस चुनाव से उपस्थित स्थिति का प्रश्न है।


डॉ. जयप्रकाश गुप्त
chikitsak@rediffmail.com,chikitsakambala@yahoo.com